बनमाली यादव
जशपुर चंद्रपुर के पूर्व विधायक जशपुर जिले के छोटे सरकार युद्धवीर सिंह जूदेव जी ने धर्मांतरित आदिवासियों को आरक्षण के लाभ से वंचित रखने के मुख्यमंत्र भुपेश बघेल को पत्र लिखा था । जो कि सोशल मीडिया में वायरल होने के बाद छग के कैथोलिक समाज ने भी इस पत्र के विरोध में मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है। आपको बता दे की अपने पत्र में युद्धवीर द्वारा आरक्षण खत्म करने को लेकर पेश किए तथ्यों को समाज ने सिरे से खारिज करते हुए मुख्यमंत्री के सामने नए तथ्य रखे हैं। जो कह रहे हैं कि इन तथ्यों के मूताबिक धर्मांतरित आदिवासियों को आरक्षण से वंचित नहीं किया जा सकता । विदित होगा कि चंद्रपुर के पूर्व भाजपा विधायक युद्धवीर सिंह जूदेव ने अभी कुछ दिन पहले ही प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को ज्ञापन सौंपकर धर्मान्तरित लोगों के जाति प्रमाण पत्र निरस्त करने की मांग की थी। जिसमे उन्होंने उच्चतम न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए स्पष्ट कहा था कि परम्परा, विवाह रीति और उत्तराधिकार के जनजातीय परम्पराओ का पालन नहीं करते उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए और इन्ही तीन बिंदुओं पर जाति प्रमाण पत्र जारी करने की बात कहा था। साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि राज्य में इस आदेश का अनुशरण नहीं किया जा रहा, जिस कारण ही आदिवासियों का धर्मांतरण कराने वालों के हौसले बुलंद हैं। इस कारण ही जो जनजातीय परंपराओं का पालन करने वाले आदिवासी हैं, जो उस लाभ के असली हकदार हैं उनको अपने हक से वंचित होना पड़ रहा है।
अब इस पत्र को लेकर अब युद्ध छिड़ गया है, युद्धवीर की इस सियासत के सामने अब छत्तीसगढ़ का कैथोलिक उरांव समाज सामने आया है, और एक ज्ञापन इस समाज ने भी मुख्यमंत्री को सौंपा है।
जिसमे संदर्भ भी युद्धवीर का यह पत्र ही है। जिसमे धर्मान्तरित आदिवासियों के आरक्षण खत्म कर जाति प्रमाण पत्र निरस्त करने की बात कही गई है।
उपरोक्त इस मामले पर सियासी भूचाल नजर आ रही है। दोनों तरफ से संविधान का हवाला है।
आपको बता दें कि युद्धवीर इन दिनों धर्मांतरण पर अपना कड़ा रुख रख रहे हैं। धर्मांतरण और हिंदुत्व जैसे अहम मुद्दों पर इनकी बेबाकी इन दिनों खूब चर्चा में है।
ज्ञातव्य है कि कैथोलिक और उरांव समाज ने जो लिखा है उसमें भी संविधान का हवाला दिया गया है जिसमें अनुच्छेद 342 का हवाला देकर कहा गया है कि आदिवासी समाज किसी भी धर्म का अनुयाई हो सकता है वहीं केरल सरकार चंद्रमोहन के उच्चतम न्यायालय के आदेश का हवाला भी दिया है जिसमें धर्म बदलने पर आदिवासी की सदस्यता से वंचित नहीं किया जा सकता वहीं यह भी बताने की कोशिश की गई है कि धर्म परिवर्तन के बाद भी परंपराओं और रूढ़ियों का निरंतर पालन कर रहे हैं।
जाहिर सी बात है कि आने वाले समय में इन मुद्दों पर सियासी रंग देखने को मिलेगा।