जानिए क्या है भाई दूज मनाने के पीछे की मान्यता

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मृण्मयी पाण्डेय
अम्बिकापुर

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सूर्यदेव और उनकी पत्नी छाया की दो संताने थी। यमराज और यमुना। भाई और बहन दोनों में बड़ा ही स्नेह था। बहन यमुना हमेशा चाहती थी भाई यमराज उनके घर आकर भोजन ग्रहण किया करें। लेकिन हमेशा काम में व्यस्त रहने वाले यमराज बहन की विनती को टाल देते थे।

एक बार बहन यमुना ने कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि पर अपने घर के दरवाजे पर भाई यमराज को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुई। बहन यमुना ने बहुत ही प्रसन्न मन से भाई यमराज को भोजन करवाया। बहन के स्नेह और प्यार को देखकर भाई यमदेव ने वर मांगने को कहा।

तब बहन ने वरदान के रूप में यमराज से यह वचन मांगते हुए कहा कि आप हर वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर भोजन करने आएं। साथ ही इस तिथि पर जो बहने अपने भाई को टीका लगाकर उन्हें भोजन खिलाएं उनमें आपका भय न हो।

तब यमदेव ने बहन यमुना को यह वरदान देते हुआ कहा कि आगे से ऐसा ही होगा। तब से यही परंपरा चली आ रही है कि हर वर्ष जो बहने अपने भाई के माथे पर तिलक लगाकर भोजन कराएंगी उसे और उसके भाई को कभी भी यमदेव का भय नहीं सताएगा।

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