उत्तराखंड :- उत्तराखंड में भाजपा नेतृत्व ने पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाकर अपना आखिरी चुनावी दांव खेल दिया है। तीरथ सिंह रावत को उपचुनाव न हो पाने के जिस कारण से हटाया गया है, दरअसल पार्टी ने उसके लिए कोई प्रयास ही नहीं किए। उसे आशंका थी कि कहीं तीरथ सिंह चुनाव न हार जाएं। चुनावी साल में तीरथ सिंह रावत के विवादित बयान, उनका ढीला ढाला रवैया और सरकार पर मजबूत पकड़ न होना भी नेतृत्व परिवर्तन की एक बड़ी वजह रही। माना जा रहा है कि भाजपा के इस दांव से विपक्षी दलों का गणित गड़बड़ा सकता है।
भाजपा नेतृत्व में इस साल की शुरुआत में उत्तराखंड को लेकर जो रणनीति बनाई थी, उसमें पार्टी के भीतर असंतोष और विरोध के चलते त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाना जरूरी समझा गया, लेकिन उनके विकल्प के तौर पर लाए गए तीरथ सिंह रावत उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पा रहे थे, यही वजह है कि चार महीने के भीतर तीरथ सिंह रावत को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी। चूंकि रावत को सरकार चलाने का ज्यादा मौका ही नहीं मिला। इस दौरान वे कुंभ और कोरोना से जूझते रहे। ऐसे में उनके कामकाज को लेकर तो कोई सवाल ही खड़े नहीं हुए, बल्कि उनके अपने बयान और ढीला ढाला रवैया ज्यादा जिम्मेदार रहा।उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन को जरूरी समझा गया और उसके लिए पार्टी नेतृत्व में नए नेता की तलाश शुरू कर दी। इस बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में भी नई टीम आ गई थी और उसकी सलाह के बाद पुष्कर सिंह धामी का नाम उभरा। हालांकि, धामी को सरकार का अनुभव नहीं है, क्योंकि वह अभी तक मंत्री ही नहीं बने। दूसरी बार के विधायक बने धामी को सड़क पर उतरकर आक्रामक तेवरों के लिए जाना जाता है। पार्टी को आने वाले छह महीनों में चुनाव के दौरान उनके ऐसे ही तेवर की जरूरत है।