रायपुर रेशम विभाग के अधिकारियों ने बताया कि शासकीय कोसा बीज केन्द्र, नैमेड़ में 12 वर्ष पहले मनरेगा के अंतर्गत करीब साढ़े तीन लाख रूपए की लागत से 28 हेक्टेयर में लगभग 16 हजार 800 साजा और इतनी ही संख्या में अर्जुन के पौधे रोपे गए थे। अब ये पौधे करीब दस फीट के पेड़ बन चुके हैं। रेशम विभाग के द्वारा इन पेड़ों पर रेशम के कीड़ों का पालन कर कोसा फल उत्पादन का कार्य करवाया जा रहा है। स्थानीय किसान और खेतिहर मजदूर श्री आयतु कुड़ियम ने वर्ष 2015 में रेशम विभाग के कर्मचारी की सलाह पर वहां मजदूर के रूप में काम करना शुरू किया था। अपनी सीखने की ललक के चलते उन्होंने धीरे-धीरे वहां कोसा फल उत्पादन का प्रशिक्षण लेना भी शुरू कर दिया। सालभर में वह इसमें पूरी तरह से दक्ष हो चुका था। काम सीखने के बाद श्री कुड़ियम ने अपने साथ गांव के चार और मनरेगा श्रमिकों को जोड़कर समूह बनाया और पेड़ों के रखरखाव के साथ कीटपालन और कोसा फल उत्पादन का कार्य शुरू किया।
कुशल कीटपालक बनने के बाद कोसा फल के उत्पादन की नई आजीविका के बारे में श्री कुड़ियाम कहते हैं – “आगे बढ़ने के लिए मेरे मन में खेती-किसानी के अलावा कुछ और भी करने का मन था। रेशम कीटपालन के रूप में मुझे रोजी-रोटी का नया साधन मिला। मनरेगा से हुए वृक्षारोपण से फैली हरियाली ने मेरी जिंदगी में भी हरियाली ला दी है। कोसा फल के उत्पादन से जुड़ने के बाद अब मैं अपने परिवार का भरण-पोषण अच्छे से कर पा रहा हूं। मेरे तीन बच्चे अच्छी पढ़ाई-लिखाई कर रहे हैं।”