जय सिंह
एक छात्र के लिए शिक्षक उतना ही महत्व रखता है जितना एक मत्स्य के लिए जल, पुराण काल से ही शिक्षकों का बखान कवियों ने अपनी कविताओं के माध्यम से किया है, और निरंतर करते आ रहे हैं।
परंतु जैसे-जैसे सामाजिक जीवन में परिवर्तन आ रहे हैं वैसे वैसे ही शिक्षक और छात्र की आपसी संबंधों में परस्पर कुछ खामियां भी देखने को मिल रही है। इस बदलते सामाजिक परिवेश में शिक्षक का महत्व पौराणिक तथ्यों के आधार पर घटता जा रहा है इसका मुख्य कारण शिक्षा व शिक्षक के प्रति समाज में एक नई सोच का उत्पन्न होना है।
वर्तमान में देखा जाए तो शिक्षा केवल एक प्रमाण पत्र हासिल करने का साधन मात्र है जिस में मुख्य भूमिका एक शिक्षक की भी होती है।
कदाचित शिक्षक छात्र के बौद्धिक विकास में सहायक होते हैं परंतु आज के दौर में शिक्षक उन छात्रों को आगे बढ़ाने में जोर देते हैं जिनका बौद्धिक विकास उच्च कोटि का होता है, परंतु ऐसा करना उन छात्रों के लिए उचित नहीं है जिनका बौद्धिक क्षमता निम्न कोटि का होता है, ऐसे छात्रों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहन नहीं दिया जाता है जिसके फलस्वरूप वे आगे बढ़ने से वंचित रह जाते हैं।
अगर शिक्षक ऐसे छात्रों को आगे बढ़ने हेतु उत्साहित कर सकें तो भविष्य में ऐसे छात्रों को आगे पढ़ने में काफी मदद मिलेगी जिसके फल स्वरूप समाज में शिक्षा व शिक्षक दोनो के लिए समाज में एक नई सोच विकसित होगी जो समाज व देश को आगे बढ़ाने में सहायक होगी।