हिंद स्वराष्ट्र सूरजपुर : जिले के लटोरी तहसील में फर्जी तरीके से बन रहे वन अधिकार पट्टे का मामला निकलकर सामने आ रहा हैं, जहां फर्जी तरीके से नियम विरुद्ध जाकर कहीं निजी जमीन पर वन अधिकार पट्टा जारी कर दिया गया है तो कहीं दूसरे जिले और अपात्र लोगों को भी पट्टा जारी कर दिया गया हैं। यह पट्टा कैसे जारी किया गया और इसमें किसकी मिलीभगत है यह तो आने वाले समय में जांच के बाद ही पता चल पाएगा। बहरहाल आज हम एक ऐसे वन अधिकार पट्टे मामले का खुलासा करने जा रहे हैं जहां राजस्व अधिकारियों द्वारा मिलीभगत कर एक व्यक्ति के निजी जमीन पर किसी दूसरे व्यक्ति को वन अधिकार पट्टा जारी कर दिया गया। इस मामले में सवाल यह उठता है कि जब रिकॉर्ड पर यह जमीन किसी और के निजी खाते में दर्ज थी तो किसकी मिलीभगत से इस जमीन पर वन अधिकार पट्टा किसी और को जारी किया गया?
दरअसल मामला लटोरी तहसील के लटोरी ग्राम का है जहां खसरा नंबर 421/2 रकबा 0.04 हे. कृष्ण कुमार तिवारी के नाम पर दर्ज है। जिस जमीन पर हरिलाल को वर्ष 2012-13 में वन अधिकार प्रमाण पत्र जारी किया गया है, जबकि उस वर्ष उक्त भूमि कृष्ण कुमार तिवारी के नाम पर दर्ज थी और यह उनकी निजी स्वामित्व की जमीन है। तात्कालिक पटवारी राजाराम भगत द्वारा बिना सक्षम अधिकारी के अनुमति या आदेश के बिना ही निजी भूमि और गोठान एवं अन्य मद की भूमियों का बड़े झाड़ जंगल में दर्ज करके फर्जी वन अधिकार पट्टे बनवाया गया हैं। आपको बता दे की पटवारी राजाराम भगत और हरिलाल द्वारा आपस में सांठगांठ कर यह वन अधिकार पट्टा बनवाया गया है। आपको बता दें कि हरीलाल पूर्व बीडीसी रह चुके हैं और राजनीतिक पार्टियों के साथ इनके अच्छे संबंध होने के कारण वे इसका फायदा उठा रहे हैं। इस मामले में हरिलाल द्वारा त्रुटि सुधार और नक्शा दुरुस्ती के लिए सूरजपुर कलेक्टर के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किया गया और सूरजपुर कलेक्टर द्वारा तहसीलदार लटोरी को मामले की जांच कर जांच प्रतिवेदन प्रस्तुत करने का आदेश दिया गया लेकिन आज पूरे डेढ़ वर्ष बीत जाने के बावजूद तहसीलदार सुरेंद्र पैंकरा द्वारा मामले की जांच रिपोर्ट कलेक्टर को नहीं सौंपी गई हैं। ऐसे में तहसीलदार की यह कार्य प्रणाली काफी सवाल खड़े करती है और इस क्षेत्र में जारी हुए अन्य वन अधिकार पट्टों की वैधता पर भी सवाल खड़े करती है। आपको बता दे की सूत्र बताते हैं कि इस हल्का नंबर में पदस्थ पटवारी राजाराम भगत द्वारा कई अन्य जिलों के लोगों के भी फर्जी तरीके से वन अधिकार पट्टे जारी करवाए गए है और इनका काम पैसे के लेनदेन कर फर्जी वन अधिकार पट्टा बनवाना ही है। आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार केवल 12 लोगों को वन अधिकार पत्र जारी किया गया है लेकिन भुइयां पोर्टल पर 14 से 15 लोगों के नाम दिखाई देते हैं।
