कबाड़ बनते जा रहे स्वच्छता के साइकिल रिक्शे: भरतपुर के कैसौडा गांव में लाखों रुपए की योजना सिर्फ फाइलों में ज़िंदा..

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हिंद स्वराष्ट्र जनकपुर गणेश तिवारी : देशभर में स्वच्छता को लेकर जहां एक ओर अभियान चल रहे हैं, वहीं दूसरी ओर धरातल पर इसके क्रियान्वयन की सच्चाई कुछ और ही बयां कर रही है। एक तरफ़ सरकारें लाखों-करोड़ों रुपए स्वच्छता के नाम पर बहा रही हैं, दूसरी ओर गांवों में कचरा ढोने के लिए ख़रीदे गए साइकिल रिक्शे धूप और बारिश में सड़ते नज़र आ रहे हैं। एमसीबी जिले के भरतपुर विकासखंड के ग्राम पंचायत कैसौडा की तस्वीर कुछ ऐसी ही है, जहां स्वच्छ भारत मिशन की मंशा तो थी, लेकिन निगरानी और जवाबदेही का पूरी तरह अभाव दिखता है।

फाइलों में चल रहा है स्वच्छता अभियान, ज़मीनी हकीकत शर्मनाक

सरकार ने गांवों में “डोर-टू-डोर” कचरा संग्रहण की व्यवस्था के तहत पंचायतों को साइकिल रिक्शा उपलब्ध कराए थे। योजना के अनुसार, घर-घर जाकर कचरा उठाना था, जिससे गांव स्वच्छ और साफ़ दिखे। लेकिन कैसौडा ग्राम पंचायत में महीनों से साइकिल रिक्शा खुले में खड़ा हुआ है। इसका कोई उपयोग नहीं किया जा रहा है और अब यह धीरे-धीरे कबाड़ में तब्दील हो रहा है।
गांव की गलियों में जगह-जगह कचरे के ढेर लगे हुए हैं। लोग अपने घरों का कचरा बाहर फेंकने को मजबूर हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाज़मी है कि जब कचरा ढोने के लिए वाहन है, तो फिर उसका उपयोग क्यों नहीं?

जिम्मेदार अधिकारी कुर्सी तोड़ रहे हैं, काम नहीं

ऐसा प्रतीत होता है कि जिन अधिकारियों की ज़िम्मेदारी है इन योजनाओं की निगरानी करना, वे सिर्फ़ दफ्तरों में बैठकर “कुर्सी तोड़ने” का काम कर रहे हैं। किसी तरह की मैदानी निगरानी या निरीक्षण नहीं किया गया, और शायद यही कारण है कि गांव में साफ-सफाई की व्यवस्था दम तोड़ चुकी है।

सरपंच पति बोले: “हमें जानकारी नहीं”, ठेकेदार बोला: “अभी तो आए हैं”

जब इस मामले में सरपंच पति राम सुंदर से सवाल किया गया तो उनका जवाब चौंकाने वाला था। उन्होंने कहा,”हमें नहीं पता गांव में कचरा उठाने का वाहन रखा गया है। अभी हम नए हैं, किसी ने हमें कुछ बताया ही नहीं।”
इसी तरह राजीव कुमार प्रजापति, जो वर्तमान में ठेकेदारी कार्य कर रहे हैं, बोले: “हमें यहां आए अभी 10-15 दिन ही हुए हैं, इससे पहले कोई और ठेकेदार कार्यरत था।”
दोनों बयानों से साफ़ है कि न योजना की कोई जवाबदेही तय की गई है, और न ही ग्राम पंचायत को इसकी मॉनिटरिंग करने की कोई गंभीरता है।

पंचों की नाराज़गी: “रिक्शा पड़ा है, कभी उपयोग नहीं हुआ”

ग्राम पंचायत के पंच धनशाय सिंह और पंच उत्तम कुमार दोनों ने अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा कि “पिछले पांच वर्षों से देखा जा रहा है कि सफाई के लिए जो रिक्शा लिया गया था, वो पंचायत के सामने यूं ही पड़ा हुआ है। इसका कभी कोई उपयोग नहीं हुआ।”



सीईओ ने कहा- “आपके माध्यम से जानकारी मिली, जांच कराएंगे”

जब इस मामले में जनपद पंचायत सीईओ अजय सिंह राठौर से संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा, “आपके माध्यम से ही यह बात सामने आई है कि रिक्शा का उपयोग नहीं हो रहा है। मैं तुरंत जांच टीम भेजूंगा।”
उनके इस जवाब ने ही सवाल खड़े कर दिए हैं कि जब ग्राम पंचायत में लाखों रुपए की सामग्री धूल फांक रही है, तो संबंधित अधिकारी को इसकी खबर तक क्यों नहीं?

कब सुधरेगा सिस्टम?

इस पूरी घटना से साफ़ है कि योजनाएं तो बनाई जा रही हैं, पैसे भी खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन उन पर निगरानी नहीं हो रही। साइकिल रिक्शे जो कचरा उठाने के लिए खरीदे गए थे, अब जंग लगने से कबाड़ में तब्दील हो रहे हैं। शासन-प्रशासन की लापरवाही का सीधा असर गांव की स्वच्छता पर पड़ा है, और ग्रामीणों को इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ रहा है।

अब देखना यह है कि जांच के बाद दोषियों पर कोई कार्रवाई होती है या फिर यह मामला भी बाकी योजनाओं की तरह फाइलों में ही दबकर रह जाएंगे।

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