अपनी चोरी छिपाने लटोरी तहसीलदार सुरेंद्र साय पैंकरा ने हिंद स्वराष्ट्र की संपादक को भेजा नोटिस…

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हिंद स्वराष्ट्र सूरजपुर : अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत कहावत तो आपने सुना ही होगा जिसका सीधा अर्थ होता हैं कि किसी भी काम को समय बीत जाने के बाद करने से कोई फायदा नहीं होता। उसी तरह अब जब समय बीत चुका है इसके बाद लटोरी तहसीलदार सुरेंद्र पैंकरा के पछताने और नोटिस भेजने से उन्हें कोई फायदा नहीं होने वाला है। पत्रकारों को डराने, धमकाने, मारने सब का प्रयास कर विफल होने के बाद अब उनके द्वारा अपने बचाव के लिए वैधानिक नोटिस भेजने का जो हथकंडा अपनाया गया है उससे पत्रकार डरने वाले नहीं हैं। आपको बता दें कि साहब द्वारा हिंद स्वराष्ट्र की संपादक को नोटिस भेज कर उनके  द्वारा प्रकाशित खबरों से उनके मान प्रतिष्ठा पर प्रभाव पड़ने और उनकी मानहानि होने की बात लिखते हुए 10 लाख रुपयों की मांग की गई हैं।

आश्चर्य की बात यह हैं कि वैधानिक नोटिस में भी तहसीलदार द्वारा अपनी किरकिरी करवाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ा है। बता दें कि उनके द्वारा भेजे गए नोटिस में इस बात का जिक्र है कि वे मानसिक अवसाद से ग्रस्त हो गए है और इसी शायद इस अवसाद में आकर उनके द्वारा नोटिस में ऐसी ऐसी बातें लिखी गई हैं जो उनके लिए ही समस्या खड़ी करने के लिए काफी है।

चलिए जानते हैं उनके द्वारा नोटिस में क्या लिखा गया है और हम उन्हें उनके उन सवालों का क्या जवाब देना चाहते हैं :

1. अपनी नोटिस के प्रथम बिंदु में उन्होंने लिखा है कि वह काफी निष्ठा और ईमानदारी से विधि के प्रावधानों नियमों प्रक्रिया के अधीन रहकर कार्य करते आ रहे हैं और आज तिथि तक ऐसा कोई भी कार्य नहीं किया है जो कि उनकी पदीय कर्तव्यों व गरीमा के विपरीत हो। इतना ही नहीं इनके द्वारा किसी भी व्यक्ति या संस्था के दबाव में अपने पदीय कर्तव्यों व गरिमा के विपरीत जाकर कोई भी कार्य नहीं किया गया हैं और नहीं अपने पदीय कार्य में कोई अनियमितता या लापरवाही बरती गई हैं। उन्होंने लिखा है कि उनके विरुद्ध किसी सक्षम न्यायालय में या उचित फोरम में कहीं पर भी किसी पक्षकार द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई हैं।

उत्तर : तहसीलदार सुरेंद्र पैंकरा द्वारा हमें दिए गए बयान में स्वयं अपनी गलती स्वीकारते हुए कहा गया था कि “शासन से प्राप्त पट्टा था चूंकि त्रुटिवश मुझसे साइन हो गया था उसमें चौहद्दी में” जब तहसीलदार साहब खुद अपनी गलती स्वीकार चुके हैं फिर नोटिस के प्रथम बिंदु को तो साफ तौर पर उनके द्वारा ही नकार दिया गया है। दूसरा मुख्य बिंदु यह है कि उनके द्वारा यह लिखना की उनके विरुद्ध किसी सक्षम न्यायालय या उचित फोरम में किसी पक्षकार द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई है पूर्णतया झूठी है क्योंकि उनके विरुद्ध माननीय उच्च न्यायालय बिलासपुर में माननीय उच्च न्यायालय की ही अवमानना का केस चल रहा हैआपको बता दे कि लटोरी निवासी साधुराम रजक द्वारा तहसीलदार के विरुद्ध हाईकोर्ट में परिवाद दायर किया गया है क्योंकि तहसीलदार द्वारा हाई कोर्ट के स्टे आर्डर को ठेंगा दिखाते हुए साधुराम के घर को तोड़ दिया था। मिली जानकारी के अनुसार वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से तहसीलदार साहब इस मामले में कोर्ट की समक्ष प्रस्तुत भी हो चुके हैं, तो ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब वे कोर्ट में प्रस्तुत भी हो चुके हैं फिर वे इस बात को कैसे भूल गए कि उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई हुई है या नहीं??

तहसीलदार सुरेंद्र पैंकरा द्वारा दिया गया बयान

2. दूसरे बिंदु में उनके द्वारा हमारे समाचार पत्र के RNI (समाचार पत्र की पंजीयन संख्या) नंबर को लिखते हुए आगे लिखा हैं कि हमारे पास पत्रकारिता करने की कोई विधिक अधिकारिता नहीं है. परंतु हमारे द्वारा बिना किसी विधिक अधिकार या हैसियत के पत्रकारिता किया जा रहा है।

उत्तर : आज के आधुनिक युग में जब सारी जानकारियां मोबाइल से ही मिल जाती है, तो थोड़ी सी मेहनत अगर तहसीलदार साहब या उनके वकील कर लेते तो शायद उनके द्वारा इस तरह की बेबुनियाद और हास्यास्पद बातें नोटिस में नहीं लिखी जाती। जब आपको हमारा रजिस्ट्रेशन नंबर मालूम था तो गूगल में सर्च कर लेते आपको सारी जानकारी मिल जाती कि हमें पत्रकारिता करने का अधिकार है या नहीं। भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा जब हमें यह सर्टिफिकेट दिया गया है तो पत्रकारिता का अधिकार भी तो होगा ही न।  RNI नंबर के साथ यह लिखना कि हमें पत्रकारिता का अधिकार नहीं है उनके द्वारा स्वयं के गाल पर मारा गया एक तमाचा हैं।

3. तीसरे बिंदु में तहसीलदार द्वारा हमारे द्वारा प्रकाशित खबरों की कुछ पंक्तियों को लिखते हुए उन्हें असत्य, निराधार और झूठा बताया हैं।

उत्तर : हमारे द्वारा प्रकाशित सभी खबरों को पूरे सबूत के साथ लगाया गया था किसी भी खबर में ऐसा कोई भी बात नहीं लिखा गया था जिसका हमारे पास कोई साक्ष्य न होअब तक हमारे द्वारा पांच जमीन रजिस्ट्री के मामले सामने लाए गए हैं जिसमें बिना कलेक्टर परमिशन के ही शासकीय मद से प्राप्त जमीन की रजिस्ट्री हुई है और ये सारी रजिस्ट्रियां तहसीलदार सुरेंद्र पैंकरा के दस्तख़त के आधार पर ही हुई हैं।


4. चौथे बिंदु में उन्होंने लिखा है कि हमारी खबरों से उनकी साफ सुथरी छवि पर प्रभाव पड़ा है और उनकी मान सम्मान धूमिल हुई है और उन्हें मानसिक और सामाजिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ रहा है और वह मानसिक अवसाद से ग्रस्त हो गए हैं। आगे उन्होंने यह भी लिखा है कि उनके विरुद्ध खबर प्रकाशित करने का हमारा उद्देश्य उनको भयभीत कर अनुचित राशि प्राप्त करना हैं।

उत्तर : माननीय तहसीलदार साहब को कौन समझाएं की हर कोई उनकी तरह भ्रष्ट नहीं होता और पत्रकार के लिए खबर प्रकाशन का कोई उद्देश्य नहीं होता, अगर कोई उद्देश्य होता है तो केवल भ्रष्टाचार की पोल खोल समाज को साफ सुथरा करना और भ्रष्टाचारियों को उनके किए की सजा दिलवाना होता है। यदि हमारे द्वारा माननीय न्यायपालिक मजिस्ट्रेट महोदय से धन उगाही की कोशिश की गई थी तो उनके द्वारा हम पर कोई एक्शन क्यों नहीं लिया गया?? जब हमारे द्वारा उनके और उनके सहयोगियों के विरुद्ध अपराध पंजीबद्ध करने के लिए माननीय पुलिस महानिरीक्षक को आवेदन दिया गया है तभी उन्हें यह बात क्यों याद आ रही है???

5. अंतिम बिंदु में उनके द्वारा हमें धूर्त और चालक किस्म के व्यक्ति बताया गया हैं और हमारे खबरों के प्रकाशन से हुए उनके मानहानि एवं मानसिक और शारीरिक क्षति के लिए 10-10 लाख की मानहानि एवं क्षतिपूर्ति के लिए सक्षम न्यायालय में वाद योजित करने के लिए यह नोटिस प्रेषित करने की बात लिखी हैं।

उत्तर : हिंद स्वराष्ट्र समाचार पत्र की प्रधान संपादक एक महिला हैं और एक महिला को नोटिस प्रेषित कर धूर्त और चालाक लिखना कही न कही उनकी मानसिक दिवालियापन को ही दर्शा रहा हैं। हम भी यह मानने के लिए मजबूर हो जा रहे हैं कि सचमुच हमारे खबरों से उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ा है और वे धीरे-धीरे मानसिक अपंगता की ओर अग्रसर हो जा रहे हैं।

नोटिस के अंत में उनके द्वारा हमें 30 दिन के भीतर 10-10 लाख रुपए उन्हें भुगतान कर पावती प्राप्त करने और लिखित में क्षमा याचना की बात लिखी हैं।

तहसीलदार द्वारा भेजे गए नोटिस ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं :

  1. क्या उन्हें अपने बचाव का यही एकमात्र उपाय नजर आ रहा है..??
  2. क्या वे नोटिस भेज कर पत्रकारों को डराने की कोशिश कर रहे हैं??
  3. अगर वह सही थे तो उनके द्वारा अपनी गलती माइक में अब दिए गए अपने बयान में क्यों स्वीकार की गई..??
  4. क्या अपने विरुद्ध अपराध पंजीबद्ध हो जाने के डर से तहसीलदार ने पत्रकारों को नोटिस भेजा है..?
  5. पुलिस द्वारा अब तक उनके विरुद्ध अपराध पंजीबद्ध नहीं करने के कारण क्या इनके हौसले इतने बुलंद हो गए हैं जो पत्रकार पर दबाव डालने नोटिस का सहारा ले रहे हैं.??

हमारे द्वारा अब तक तहसीलदार सुरेंद्र पैंकरा के विरुद्ध जितनी भी खबरें प्रकाशित की गई है सभी खबरों में पूरे साक्ष्य पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया गया है। अब सिर्फ हम ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश की जनता ऐसे भ्रष्ट अधिकारी पर कब कार्यवाही होती है इसका इंतजार कर रहे हैं। सीएम कांटेक्ट के कारण अब तक हर जगह से बचते आ रहे तहसीलदार कब तक ऐसे बचते रहते हैं यह तो देखने की बात है, लेकिन जब बात पत्रकार और पत्रकारिता की अस्मत पर आए तो पीछे हटने की या डरने की तो कोई बात ही नहीं हो सकती है। ना हम डरे हैं ना हम डरेंगे बल्कि जल्द ही हम इनके कारनामों के कुछ और खुलासे कर उनके उच्च अधिकारियों तक जानकारी पहुंचाएंगे ताकि देर– सबेर ही सही लेकिन इन पर कार्रवाई हो यह हम सुनिश्चित करेंगे।

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