हिंद स्वराष्ट्र सूरजपुर : शासन की योजनाएं गरीबों को सशक्त बनाने के लिए बनाई जाती है, लेकिन इन योजनाओं का लाभ गरीबों तक पहुंच ही नहीं पाता है। गरीबों तक पहुंचने से पहले ही शासन और जनता के बीच बैठे कुछ भ्रष्ट अधिकारी और कर्मचारी शासन की इन योजनाओं को अपने कुछ शुभचिंतकों को सप्रेम भेंट चढ़ा देते हैं। ये अधिकारी और कर्मचारी इतनी भ्रष्ट होते हैं की बिना रिश्वत के इनका पेन काम ही नहीं करता है। ये काफी पावरफुल लोग होते हैं जो अपनी पहुंच काफी ऊपर तक रखते हैं और इनका बैंक बैलेंस हमेशा हाई होता हैं। गलती पकड़े जाने की स्थिति में ये लोग अपनी पैसे और पहुंच का उपयोग कर मामले को दबाने की कोशिश करते हैं। शायद इनके द्वारा चढ़ावा ऊपर तक पहुंचाया जाता है जिसके कारण उनके उच्च अधिकारी उनसे सेट रहते हैं।
खैर छोड़िए आज हम आपको बताते हैं आज के समय में सबसे ज्यादा चर्चा में रहने वाले लटोरी तहसील के बारे में जहां एक पटवारी राजा लाल भगत द्वारा पूर्व बीडीसी हरिलाल के साथ मिलीभगत कर अपने पद का दुरुपयोग करते हुए पहले तो किसी व्यक्ति की निजी जमीन पर वन अधिकार पट्टा बनवा दिया गया वहीं दूसरी ओर आज हम आपको बताते हैं कैसे गोचर की भूमि पर एक हितग्राही से सांठगांठ कर वन अधिकार पट्टा जारी करवाया गया हैं।
दरअसल मामला लटोरी तहसील के लटोरी ग्राम का हैं जहां भूमि खसरा नंबर 1026 पर सुखलाल आत्मज बुधन जाति चेरवा को वन अधिकार पट्टा प्रदान किया गया जबकि सरगुजा स्टेट सेटलमेंट के अनुसार यह भूमि गोचर की भूमि हैं। आपको बता दें कि नियमतः गोचर भूमि (चरागाह भूमि) पर वन अधिकार पट्टा नहीं बन सकता हैं क्योंकि गोचर भूमि मवेशियों के चरने के लिए आरक्षित होती है और इसका उपयोग वन भूमि के रूप में नहीं किया जा सकता है। फिर नियम विरुद्ध जाकर किसी व्यक्ति को गोचर की भूमि में किस प्रकार से वन अधिकार पट्टा प्रदान किया गया यह तो जांच का विषय हैं।
आपको बता दें कि गोचर भूमि वह भूमि होती है जो ग्राम पंचायत के नियंत्रण में होती है और मवेशियों के चरने के लिए आरक्षित होती है। वही वन अधिकार पट्टा, अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासियों को वन भूमि पर अधिकार प्रदान करता है, जिस पर वे पारंपरिक रूप से काबिज हैं लेकिन यह गोचर भूमि पर लागू नहीं होता है। गोचर भूमि का उपयोग चराई के लिए किया जाता है और इसे वन भूमि के रूप में मान्यता नहीं दी जाती है, इसलिए इस पर वन अधिकार पट्टा नहीं बन सकता।
इस जमीन पर पटवारी राजा लाल भगत द्वारा कैसे वन अधिकार पट्टा जारी करने के लिए प्रतिवेदन दिया गया और उसके लिए उन्होंने नियमों की अवहेलना क्यों की इसकी जांच होना अनिवार्य है। पटवारी राजा लाल द्वारा ऐसे एक दो नहीं बल्कि कई ऐसे कारनामे किए गए हैं जिनके खुलासे हमारे द्वारा लगातार किए जाते रहेंगे।
